पुरी जगन्नाथ मंदिर के आस पास विकास कार्य और सोंदर्यकरण को लेकर टॉइलेट और पार्किंग आदि बनाने के लिए मठों को ध्वस्त किया जा रहा है। ये मठ 1000-1200 वर्ष पुराने है। मंदिर परिसर के चारों ओर खनन किया जा रहा है और 30-40 फुट गहरा खनन किया जा चुका है, जिससे मंदिर को दीर्घकालिक क्षति पहुँचने की आशंका है। सरकार ये कार्य कॉरीडोर निर्माण के नाम पर कर रही है। मंदिर को क्षति पहुंचाने के विरोध में लोगों द्वारा प्रदर्शन किये जा रहे है। विरोध को देखते हुए सरकार ने 30-40 फुट गहरे गड्डे में बालू भर दिया।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इस कार्य के लिए कोई भी अनुमति नहीं दी है फिर भी सरकार मंदिर के आसपास लगातार खनन कर रही है, जिसके कारण मंदिर की दीवारों में दरारें आने लगी है। विरोध को देखते हुए सरकार कुछ समय के लिए खनन रोक देती है लेकिन कुछ समय बाद फिर से कार्य को आगे बढ़ाया जाता रहा है। स्थानीय मीडिया के अनुसार सरकार की मनमानी जारी है और मंदिर के उत्तर द्वार के पास खनन शुरू कर दिया गया है।
हाल ही में ASI ने भगवान जगन्नाथ की ध्वजा की लंबाई को ये कहकर छोटा करवा दिया कि उसके हिलने से मंदिर पर प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा मंदिर के आसपास DJ, ऑटो रीक्शा और पटाखे जलाना भी मना है क्योंकि इनके कंपन से मंदिर की दीवारों पर प्रभाव पड़ता है। मंदिर की दीवारें सिमेन्ट आदि से न बनकर प्राकृतिक गोंद और स्टोन लॉक की तकनीक से जुड़े हुए है। फिर भी मंदिर परिसर के आसपास ड्रिल मशीनों और जेसीबी द्वारा खनन किया जा रहा है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मंदिर को कितना नुकसान पहुंचाया जा रहा है।
खनन के अलावा मंदिर की अलमोल वस्तुओं, खजाने और प्राचीन पांडुलिपियों के गायब होने की भी बात सामने आ रही है। कुछ समय पहले श्री जगन्नाथ मंदिर की रसोई में 40 से अधिक मिट्टी के चूल्हे बदमाशों द्वारा तोड़ दिए गए। इन चूल्हों पर भगवान के लिए प्रसाद तैयार किये जाते थे। इसके अलावा पुरी जगन्नाथ मंदिर के खजाने की चाबियां सालों से ‘गायब’ हैं और ओडिशा सरकार की प्रतिक्रिया भ्रमित करने वाली है।
ओडिशा सरकार के जगन्नाथ मंदिर अधिनियम (1960) में कहा गया है कि रत्न भंडार का हर 3 साल में ऑडिट किया जाना चाहिए। लेकिन 1978 के बाद कोई मूल्यांकन नहीं किया गया है। 2021 में एक आरटीआई जवाब ने 1978 को भी मूल्यांकन पर संदेह जताया था क्योंकि जिला कोषागार में कथित तौर पर 1970 के बाद से रत्न भंडार की चाबियों का कोई रिकॉर्ड नहीं था।
भगवान जगन्नाथ के पास भक्तों द्वारा दान किए गए और सदियों से राजाओं द्वारा दिए गए बहुत सारे सोने, चांदी और कीमती रत्न हैं। जगन्नाथ मंदिर के तीनों देवताओं के अधिकांश आभूषण और अलंकरण प्राचीन मंदिर के ‘रत्न भंडार’ में रखे गए हैं। रत्न भंडार में 2 कक्ष होते हैं। बाहरी कक्ष में 3 कमरे हैं और यह उन गहनों और गहनों को संग्रहीत करता है जिनसे तीनों देवताओं को सुशोभित किया जाता है। बाहरी कक्ष नियमित रूप से खोला जाता है और त्योहारों के अवसर पर पुजारियों द्वारा आभूषण निकाले जाते हैं। बाहरी कक्ष में तीन चाबियां होती हैं।
एक चाबी पुरी राजा, गजपति महाराज के पास रहती है, एक चाबी मंदिर प्रशासन के अधिकारियों (सरकार) के पास रहती है, और एक चाबी मंदिर के पुजारी ‘भंडार मेकाप’ के पास होती है जो कोषागार के प्रभारी होते हैं। 2018 में, खजाने के कमरे के आंतरिक कक्ष की सुरक्षा और स्थायित्व को लेकर चिंताएं थीं। आंतरिक कक्ष दशकों से नहीं खोला गया है। जब बाहरी दीवार पर दरारें देखी गईं और मरम्मत कार्य की आवश्यकता को देखते हुए पुरी जिला कलेक्टर ने कहा कि आंतरिक कक्ष की चाबियां ही नहीं मिलीं।
आंतरिक कक्ष को 3 चाबियों के एक सेट द्वारा खोला जाता है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, आंतरिक कक्ष आखिरी बार 1964 में खोला गया था। 3 दरवाजे हैं जिन्हें खोलने के लिए 3 चाबियों की आवश्यकता होती है। आंतरिक कक्ष में अनुमानित 100 किलोग्राम से अधिक सोने के आभूषण, चांदी के बर्तन और सोने और चांदी के सिक्के हैं।