पाकिस्तान भी भारत के साथ ही 1947 में भारत से अलग होकर अंग्रेजों से आजाद हुआ था। उसके बाद एक बार पाकिस्तान के निर्माता मुहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान के भविष्य को लेकर कहा था कि पाकिस्तान की नियति ऐसी हो गई है, जिसे अब कभी भी नहीं बदला जा सकता। जिन्ना के मुंह से निकले शब्द ही उसके बाद पाकिस्तान की असलियत बनते नजर आए। 1947 में आजाद हुए पाकिस्तान में पहले लोकतान्त्रिक आम चुनाव 1970 में जाकर हुए और इन्हीं चुनावों ने पाकिस्तान के बंटवारे को होना भी निश्चित कर दिया।
1970 में पाकिस्तान की नई-नई संसद भी बनकर तैयार हुई थी और उसी समय पहले आम चुनाव हुए। तब से लेकर 2024 के आम चुनाव तक पाकिस्तान में 7 प्रधानमंत्री रह चुके है और दो बार मार्शल लॉ भी लग चुका है। 1970 ने पाकिस्तान में सिर्फ लोकतान्त्रिक सरकार को आकार को ही आकार नहीं दिया वरन पाकिस्तान विभाजन का रास्ता भी तैयार किया था।
2024 के आम चुनावों में पाकिस्तान में नवाज़ शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (PML-N) और इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली है जिसने पाकिस्तान के 1970 के चुनावों की यादें भी ताजा कर दी है।
इस तरह हुआ था पाकिस्तान के 1970 का चुनाव
1947 के बाद से पाकिस्तान में पहली बार 1970 में जाकर लोकतान्त्रिक साकार बनने जा रही थी। 1970 का चुनाव अयूब खां के मार्शल लॉ के साये में हुआ था, जो 1958 से लागू था। 1970 में पाकिस्तान के पास दो ही विकल्प बचे थे कि या तो देश में लोकतंत्र बहाल करके लोकतान्त्रिक सरकार बनाई जाए अन्यथा देश में अस्थिरता का दौर यूं ही जारी रहता।
उस समय पाकिस्तान में मुख्यत: पश्चिमी पाकिस्तान के जुल्फिकार अली भुट्टो की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (PPP) और पूर्वी पाकिस्तान के शेख मुजीबुर्रहमान की आवामी लीग दो ही पार्टियों के बीच टक्कर थी। पूर्वी पाकिस्तान में संसद की 162 सीटें थी जबकि पश्चिमी पाकिस्तान में 138 सीटें थी। शेख मुजीबुर्रहमान ने पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में अपने उम्मीदवार खड़े किए थे लेकिन जुल्फिकार अली भुट्टो ने पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) को पूरी तरह दरकिनार कर दिया था।
चुनाव परिणाम ऐसा निकला जिसकी जुल्फिकार अली भुट्टो और राष्ट्रपति याहया खान को उम्मीद तक नहीं थी। आवामी लीग पार्टी प्रचंड बहुत के साथ सरकार बनाने जा रही थी। आवामी लीग ने पूर्वी पाकिस्तान में 162 में से 160 सीटों पर फतह हासिल कर ली थी। जबकि पाकिस्तान पीपल्स पार्टी पंजाब और सिंध को मिलाकर 138 सीटों में से 81 सीट पर ही जीत हासिल कर पाई।
पाकिस्तान की राजधानी में बैठे पश्चिमी पाकिस्तान के प्रभुत्वशाली पंजाबी और सिन्धी लोग पूर्वी पाकिस्तान के नागरिकों को दोयम दर्जे का समझते थे। चुनाव में मिली प्रचंड जीत ने पूर्वी पाकिस्तानी लोगों में आजादी और स्वायत्ता की चाह को और प्रबल कर दिया।
एक फ्रांसीसी लेखक ने कहा था कि पश्चिमी पाकिस्तान के लोगों के साथ कई सालों तक सौतेला व्यवहार किया गया। वहाँ के नागरिकों को कई विकास की योजनाओं से वंचित रखा गया।
पश्चिमी पाकिस्तान की याहया सरकार को सेना का समर्थन था। आवामी लीग को चुनाव में प्रचंड बहुमत के बावजूद उसे सरकार गठन के अधिकारों को मान्यता नहीं दी। याहया खान ने संसद के संचालन को अनिश्चितकालीन देरी के लिए टाल दिया और राजनीतिक सत्ता हस्तांतरण में आनाकानी करने लगा। जनादेश को न मानने के चलते पूर्वी पाकिस्तान में आजादी के लिए स्वर और तेज हो गए।
अपने ही नागरिकों का पाकिस्तानी सेना ने किया कत्लेआम
पाकिस्तानी राष्ट्रपति द्वारा जनादेश को न मानने के दौरान शेख मुजीबुर्रहमान ने पाकिस्तान के गठन के समय से ही बंगालियों के साथ हो रहे सौतेले रवैये की बातों ने लोगों में आजादी की चाह को और बढ़ाने में घी का काम किया। इस बीच पाकिस्तानी आर्मी ने आजादी की मांग को कुचलने के लिए ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू कर दिया और 24 मार्च 1971 को पूर्वी पाकिस्तान विरोध को कुचल दिया। ऑपरेशन के दौरान पाकिस्तान आर्मी ने ढाका यूनिवर्सिटी के हजारों छात्र-छात्राओं और बुद्धिजीवियों को मौत के घाट उतार दिया गया। दो महीने तक चले इस एक तरफा रक्तपात में हजारों मौतें हुई, कई अवैध गिरफ्तारियाँ हुई और पूर्वी पाकिस्तान के कई शहर तबाह कर दिए गए।
एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तानी सेना के इस ऑपरेशन के दौरान पूर्वी पाकिस्तान के 3-30 लाख लोगों को मौत के घाट उतारा गया। तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे नरसंहार की संज्ञा दी थी।
सेना के कत्लो-गारद के बावजूद 26 मार्च 1971 को शेख मुजीबुर्रहमान ने टेलीग्राम और रेडियो के जरिए बांग्लादेश की आजादी की घोषणा कर दी। उन्होंने कहा था, “यह शायद मेरा आखिरी संदेश हो सकता है लेकिन आज बांग्लादेश स्वतंत्र है। मैं बांगलादेश के लोगों का आव्हान करता हूं कि आप जहां कहीं है, सेना के कब्जे का प्रतिरोध करें। जब तक बांग्लादेश की जमीन से एक-एक पाकिस्तानी सैनिक को खदेड़ नहीं दिया जाता, तब तक आपको जंग जारी रखनी है।”
इस तरह शेख मुजीबुर्रहमान के आजादी के ऐलान और भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तानी सेना की हार ने बांग्लादेश की आजादी पर मुहर लगा दी। इस तरह 1970 में लागू हुए कागजी लोकतंत्र में जनादेश को न मानने के कारण पूर्वी पाकिस्तान, पश्चिमी पाकिस्तान से अलग होकर स्वतंत्र राष्ट्र बना। 1970 के बाद से पाकिस्तान में दो बार मार्शल लॉ भी लग चुका है।